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जनमगांठ: यादां की गांठ

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घर में बड़ों से सदा से एक मेवाड़ी शब्द सुना है - जनमगांठ अर्थात् जन्मदिन। हांलांकि ऐसा ही शब्द हिंदी भाषा में भी है - वर्षगांठ। अर्थ पूछने पर पता चला कि पहले के समय में जब अभिभावकों को अक्षर ज्ञान या गिनती आदि नहीं आती थी तब वो अपने बच्चों की उम्र या आयु को याद रख सकें इसके लिए हर वर्ष के जन्मदिन पर किसी कपड़े में एक गांठ बांध लिया करते थे। संभवतः इसलिए इस दिन को जनमगांठ कहा जाता है - वह दिन जिसकी गांठ बांधी जाए कि आयु में एक वर्ष की वृद्धि हुई है। साथ ही गांठों की संख्या गिनने पर आयु भी पता लगाई जा सकती है। इस तरह रोज़मर्रा की ज़िंदगी में प्रयुक्त होने वाले इस शब्द का आविर्भाव शायद रोज़मर्रा की ही समस्याओं को हल करने के लिए हुआ होगा। आम बोलचाल की भाषा में कई ऐसे शब्द हैं जिनकी उत्पत्ति के पीछे कोई न कोई जीवनोपयोगी कुंजी है। ये बोलचाल हमारी धरोहर है, और इसे सहेजना हमारा कर्त्तव्य ही नहीं सौभाग्य है। चित्र- इंटरनेट से साभार

गुरु पूर्णिमा: गुरूता का सम्मान

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गुरु पूर्णिमा का पर्व आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसका उद्देश्य गुरु के महत्व और महिमा को पहचानना और सम्मान देना है। गुरू केवल शैक्षणिक ही नहीं होता, है वह व्यक्ति अथवा प्राणी जो हमें कोई सीख दे जाए या जीवन जीने की कला सीखा दे, या कोई जीवनोपयोगी शिक्षा प्रदान करे, गुरु होता है। इतिहास: गुरु पूर्णिमा, वो पूर्णिमा है जब आदियोगी शिव ने आदिगुरु अर्थात् पहले गुरु का रूप लिया । वह दक्षिण की ओर मुड़ गए, यही कारण है कि वे दक्षिणामूर्ती के रूप में भी जाने जाते हैं। इसी दिन को उन्होंने अपने सात शिष्यों, जो सप्तऋषि कहलाए, को योग विज्ञान देना शुरू किया। इस प्रकार, दक्षिणायण की पहली पूर्णिमा, गुरु पूर्णिमा कहलाती है क्योंकि इस दिन पहले गुरु प्रकट हुए थे। एक अन्य मान्यता है कि गुरु पूर्णिमा के दिन महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था। इसी कारण इसे व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। हिंदू धर्म में वेदव्यास को प्रथम गुरु का दर्जा दिया गया है क्योंकी उन्होंने मानव जाति को सर्वप्रथम वेदों के ज्ञान से परिचित करवाया था। बौद्ध धर्म में भी गुरू पूर्णिमा का अत्यधिक महत्व है।  माना जाता है कि इ सी दिन भगवान