गुरु पूर्णिमा: गुरूता का सम्मान


गुरु पूर्णिमा का पर्व आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसका उद्देश्य गुरु के महत्व और महिमा को पहचानना और सम्मान देना है।
गुरू केवल शैक्षणिक ही नहीं होता, है वह व्यक्ति अथवा प्राणी जो हमें कोई सीख दे जाए या जीवन जीने की कला सीखा दे, या कोई जीवनोपयोगी शिक्षा प्रदान करे, गुरु होता है।

इतिहास:
  • गुरु पूर्णिमा, वो पूर्णिमा है जब आदियोगी शिव ने आदिगुरु अर्थात् पहले गुरु का रूप लिया । वह दक्षिण की ओर मुड़ गए, यही कारण है कि वे दक्षिणामूर्ती के रूप में भी जाने जाते हैं। इसी दिन को उन्होंने अपने सात शिष्यों, जो सप्तऋषि कहलाए, को योग विज्ञान देना शुरू किया। इस प्रकार, दक्षिणायण की पहली पूर्णिमा, गुरु पूर्णिमा कहलाती है क्योंकि इस दिन पहले गुरु प्रकट हुए थे।

  • एक अन्य मान्यता है कि गुरु पूर्णिमा के दिन महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था। इसी कारण इसे व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। हिंदू धर्म में वेदव्यास को प्रथम गुरु का दर्जा दिया गया है क्योंकी उन्होंने मानव जाति को सर्वप्रथम वेदों के ज्ञान से परिचित करवाया था।

  • बौद्ध धर्म में भी गुरू पूर्णिमा का अत्यधिक महत्व है। माना जाता है कि इसी दिन भगवान बुद्ध ने बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्ति के बाद अपना पहला उपदेश दिया। इसी कारण आज के दिन भगवान बुद्ध के अनुयायी उनकी विशेष तौर पर पूजा करते हैं।

गुरू पूर्णिमा का अवसर गुरूता और गुरु के महत्व को रेखांकित करता है। यह हमें याद दिलाता है कि हम कितने भी बड़े हो जाएं गुरु का स्थान सदैव हमसे ऊपर ही रहता है।
भारतीय संस्कृति की ये अद्भुत परंपरा हमारी अमूल्य धरोहर है, इसे सहेजना और समृद्ध करना हमारा कर्तव्य ही नहीं वरन् सौभाग्य है।

चित्र- इंटरनेट से साभार

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