चैत का महीना : नव का उत्सव


हिंदू पंचांग के अनुसार बारह महीने इस प्रकार हैं: चैत्र,वैषाख, ज्येष्ठ, आषाढ़,श्रावण,भाद्रपद,अश्विन, कार्तिक,मार्गशीर्ष,पौष,माघ और फाल्गुन। इनमें हिंदू पंचांग वर्ष का प्रथम माह चैत्र है, जो अंग्रेज़ी कैलेंडर के अनुसार मार्च–अप्रैल में पड़ता है।
चैत्र मास का आरंभ फाल्गुन अमावस्या के अगले दिन यानि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है, और इसी दिन से चैत्र नवरात्रि की भी शुरुआत होती है।

■ पौराणिक/धार्मिक महत्व
पौराणिक मान्यता के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को परमपिता ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की थी, अर्थात् सृष्टि का आविर्भाव इसी दिन हुआ था, अतः इसे वर्षारंभ माना जाता है। एक अन्य मान्यता है कि इसी दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लेकर मनु की नौका को जलप्रलय से निकाल कर सृष्टि में जीवन की शुरुआत की थी।

■ सांस्कृतिक महत्व
चैत्र माह में देश में विभिन्न हिस्सों में भारतीय नववर्ष को अलग–अलग नामों और तरीकों से मनाया जाता है। यह चैत्र नवरात्रि का भी महीना है, जिसके अंतर्गत चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को घट स्थापना या नवरात्रि स्थापना कर नौ दिनों तक मां दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है। शक्ति की आराधना का यह मुख्य पर्व भारतीय संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसी दिन भारत के कई हिस्सों में चेटीचण्ड का त्योहार भी मनाया जाता है।
इसी के साथ महाराष्ट्र में यह दिन नए साल और नई फसल के स्वागत में गुड़ी पड़वा के रूप में मनाया जाता है। आंध्र प्रदेश व कर्नाटक में इसे उगादि या युगादि के रूप में मनाया जाता है। पंजाब में नववर्ष और नए धान की कटाई कर चैत्र माह में बैसाखी का त्योहार मनाया जाता है, वहीं असम में यह बोहाग बिहु के नाम से मनाया जाता है जो फसलों की कटाई की खुशी और धन–धान्य की कामना के लिए होता है।
चूंकि यह भारतीय नववर्ष का प्रारंभ माना गया है, अतः चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन कई जगह दिन की शुरुआत मिश्री, नीम के पत्ते, काली मिर्च, खट्टे और कसैले पदार्थ एक साथ खा कर की जाती है। यह इस बात का द्योतक है कि जीवन में वर्ष भर मिलने वाले खट्टे, मीठे, कड़वे, तीखे अनुभवों के लिए हम तैयार रहें।

■ प्राकृतिक महत्व
यह माह वसंत ऋतु के अंतर्गत ही पड़ता है परंतु अब वसंत का उतार और ग्रीष्म ऋतु का आगाज़ होता है, अतः धीरे–धीरे मौसम में गर्मी बढ़ने लगती है। इस कारण प्रकृति भी अपना रंग–रुप बदलने लगती है, पेड़ों से पत्ते झड़ने लगते हैं और शाखें सूखने लगती हैं। परंतु यह अंत एक आरंभ की रूपरेखा ही है।

■ वैज्ञानिक महत्व
चूंकि यह माह ग्रीष्म की शुरुआत का द्योतक है अतः इस महीने से धीरे-धीरे अनाज का सेवन कम कर फलों का सेवन शुरू कर देना चाहिए। इसी के साथ पानी अधिक पीना चाहिए, ताकि ग्रीष्म के आघात से बचा जा सके। चैत्र में गुड़ नहीं खाना चाहिए, परंतु चने का सेवन लाभदायक माना गया है। 
इस महीने से बासी भोजन बिल्कुल नहीं खाना चहिए, क्योंकि वातावरण के तापमान में वृद्धि होने लगती है और खाद्य पदार्थ जल्दी खराब हो जाते हैं।
इस प्रकार चैत का महीना जीवन चक्र में कई बदलाव लेकर आता है जो प्रकृति के अनुरूप और सेहत के लिए आवश्यक हैं। जीवन में नवीनता का संचार करने वाला यह माह हमें आने वाले वर्ष के लिए शुभ संकल्प लेने का अवसर देता है।
प्रत्येक माह की तरह चैत्र मास का भी अपना सामाजिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक महत्व है, तथा नववर्ष और नई फसल के स्वागत का संदेश भी इस माह में अंतर्निहित है। नव वर्ष का उत्साह और आने वाले साल की उम्मीदें लाने वाला यह माह हमारी संस्कृति का एक अमूल्य अंग है।

भारतीय कैलेंडर के महीने यहां के मौसम और परिस्थितियों के अनुसार हैं। साथ ही ये हमारी समृद्ध और प्रबुद्ध विरासत के परिचायक भी हैं। इनके अनुसार जीवनशैली अपनाना आवश्यक ही नहीं हितकारी भी है। इस धरोहर को सहेजना हमारा परम कर्तव्य और सौभाग्य है।





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