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मालवा की थाली

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मालवा की इस थाली के अवयव कुछ इस प्रकार हैं– पान्ये एक तरह से मक्का की रोटी या बाटी ही है, लेकिन इसकी विशेषता है, कि इसे खाखरे के पत्तों में लपेट कर या ढंक कर सेका जाता है। इसके कारण इनका स्वाद मक्का की रोटी से काफ़ी भिन्न होता है। यहां बता दूं कि खाखरे के पत्ते वही हैं जिनसे पुराने समय में पत्तल– दौने बनाए जाते थे, क्योंकि ये स्वास्थ्य की दृष्टि से लाभदायक हैं। पान्ये बनाने के लिए मक्की का आटा थोड़ा नमक मिला कर बांध (ओसन) लिया जाता है, इसके बाद इसे रोटी से या टिक्कड़ का आकार दे कर खाखरे के पत्तों के बीच रख कर चूल्हे की आग में या तंदूर में सेक लिया जाता है। इसकी सिकाई काफी वक्त लेती है, और अच्छे से सेका जाना ज़रूरी भी है। अच्छी और पूर्ण सिकाई के बाद इसका अलग ही स्वाद आता है। इन्हें घी के साथ खाया जाता है। इस थाली का अगला सदस्य है, उड़द की दाल, जिसे काली दाल भी कहा जाता है। उड़द की दाल प्रोटीन और लौह तत्वों का भण्डार है। इस दाल को राई, जीरा, सौंफ, धनिया, नमक, हल्दी, मिर्च, आदि मसालों के साथ छौंक लगाया जाता है। इसके साथ इस थाली में गुणकारी सूखी लाल मिर्च और लहसुन की चटनी, जिसमें हींग, जीरा,

राजस्थान की थाली–३

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मरुप्रदेश के नाम से विख्यात राजस्थान ना सिर्फ अपनी ऐतिहासिक धरोहर के लिए बल्कि अपनी स्वादिष्ट और विविधतापूर्ण भोजन परंपरा के लिए भी जाना जाता है।  इसी कड़ी में प्रस्तुत थाली के अवयवों के विषय में थोड़ी चर्चा करते हैं। इस थाली का राजा अर्थात् मुख्य अवयव है मक्के के ढोकले। मक्का के आटे से बनने वाले ढोकले निश्चित ही घर–घर में प्रिय हैं और हों भी क्यों न आखिर स्वाद और गुण दोनों में ही श्रेष्ठ जो हैं। मक्का के मोटे आटे में भारतीय रसोई की जान, विभिन्न सूखे मसाले जैसे राई, हींग, जीरा, नमक, मिर्च, पीसा धनिया, पिसी हल्दी, आदि मिला कर एकसार कर लिया जाता है। इसके बाद इस आटे में मौसमी सब्ज़ियां जैसे मटर, पालक, हरा धनिया, आदि मिला दी जाती हैं, साथ ही मूंगफली के दाने, और थोड़ा खार मिला कर गुनगुने पानी के साथ आटा गूंथ लिया जाता है। मकई का आटा गूंथना भी काफ़ी तकनीकी काम है, जो बड़े अभ्यास से सीखा जाता है। बहरहाल, आटे को बांध कर मनचाहे आकार के ढोकले गढ़ लिए जाते हैं। इसके बाद इन्हें भाप में अच्छे से सिझाया (पकाया) जाता है।  ढोकलों को तिल के तेल के साथ अथवा घी के साथ खाया जाता है, परंतु तिल के तेल से इस

बड़ी, पापड़, अचार: स्वाद का संग्रहण

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भारतीय घरों की जो सबसे बड़ी विशेषता है वह है आपातकाल के लिए संग्रहण करना। सदियों से ये परंपरा हमारे लोक व्यवहार का हिस्सा है। चाहे वह मुद्रा हो या भोजन सामग्री  संग्रहण की आदत सदा से विषम परिस्थितियों में सहायक रही है। इसी कड़ी में भारतीय भोजन परंपरा के कुछ अवयव हैं, बड़ी, पापड़, अचार, मुरब्बा, आदि, जो कि संग्रहण परंपरा के बेहतरीन उदाहरण हैं। साथ ही ये सुदूर बैठे अपनों को अपने घर का स्वाद चखाने और परदेस में घर का एहसास दिलाने का भी एक ज़रिया हैं। अचार, पापड़, आदि सामग्रियांं स्वाद और प्रेम का संचरण करने में महती भूमिका निभाते हैं। आइए इनके विषय में थोड़ी चर्चा करते हैं। ■   बड़ियां– उड़द दाल, मूंग दाल, चवला दाल, आदि को गला कर, पीस कर और इनमें आवश्यक मसाले मिला कर भिन्न–भिन्न आकार की बड़ियां सुखा दी जाती हैं। इसके बाद साल, दो साल, यानि लंबे समय तक इन्हें भोजन सामग्री के रूप में काम लिया जाता है। सब्ज़ी, कढ़ी, आदि में। अर्थात् जब मौसमी सब्ज़ियां उपलब्ध न हो पाएं और दाल खा–खाकर लोग ऊब जाएं तो बड़ी काम आती है। घर में सब्ज़ी न हो, तब भी झटपट इसे बनाया जा सकता है। इस प्रकार भोजन सामग्री की क