राजस्थान की थाली–३


मरुप्रदेश के नाम से विख्यात राजस्थान ना सिर्फ अपनी ऐतिहासिक धरोहर के लिए बल्कि अपनी स्वादिष्ट और विविधतापूर्ण भोजन परंपरा के लिए भी जाना जाता है। इसी कड़ी में प्रस्तुत थाली के अवयवों के विषय में थोड़ी चर्चा करते हैं।
इस थाली का राजा अर्थात् मुख्य अवयव है मक्के के ढोकले। मक्का के आटे से बनने वाले ढोकले निश्चित ही घर–घर में प्रिय हैं और हों भी क्यों न आखिर स्वाद और गुण दोनों में ही श्रेष्ठ जो हैं। मक्का के मोटे आटे में भारतीय रसोई की जान, विभिन्न सूखे मसाले जैसे राई, हींग, जीरा, नमक, मिर्च, पीसा धनिया, पिसी हल्दी, आदि मिला कर एकसार कर लिया जाता है। इसके बाद इस आटे में मौसमी सब्ज़ियां जैसे मटर, पालक, हरा धनिया, आदि मिला दी जाती हैं, साथ ही मूंगफली के दाने, और थोड़ा खार मिला कर गुनगुने पानी के साथ आटा गूंथ लिया जाता है। मकई का आटा गूंथना भी काफ़ी तकनीकी काम है, जो बड़े अभ्यास से सीखा जाता है। बहरहाल, आटे को बांध कर मनचाहे आकार के ढोकले गढ़ लिए जाते हैं। इसके बाद इन्हें भाप में अच्छे से सिझाया (पकाया) जाता है। 
ढोकलों को तिल के तेल के साथ अथवा घी के साथ खाया जाता है, परंतु तिल के तेल से इसका स्वाद द्विगुणित हो जाता है। ढोकले और तिल का तेल जैसे राम मिलाई जोड़ी है, और सर्दियों के लिहाज़ से काफ़ी गुणकारी भी।
इस थाली का अगला सदस्य है, उड़द की दाल, जिसे काली दाल भी कहा जाता है। उड़द की दाल प्रोटीन और लौह तत्वों का भण्डार है। इस दाल को राई, जीरा, सौंफ, धनिया, नमक, हल्दी, मिर्च, आदि मसालों के साथ छौंक लगाया जाता है, ये मसाले खाने का स्वाद और गुण दोनों बढ़ाते हैं।
इस अद्भुत थाली का अगला सदस्य है तिल और मूंगफली की चटनी। इसे बनाने के लिए तिल और मूंगफली को सेक कर मसालों और हरे धनिए के साथ पीस लिया जाता है। 
इस थाली का अगला अवयव है गाजर का हलवा। यह एक प्रसिद्ध और सर्वप्रिय व्यंजन है, जिसके बिना शीत का आनन्द अधूरा है। सर्दी में बहुतायत में मिलने वाली गुणकारी गाजर को घिस कर या पीस कर घी में भूना जाता है, इसके बाद दूध में इसे बहुत देर तक सिझाया जाता है। गाजर का कच्चापन निकल कर अच्छे से पक जाने और दूध कट जाने के बाद आवश्यक मात्रा में शक्कर या गुड़ मिला कर मिठास लाई जाती है। सर्दियों में इस हलवे के स्वाद और गुण का कोई सानी नहीं है। 
इस प्रकार सर्दियों में राजस्थान की यह थाली स्वाद और गुणों से भरपूर है, और मौसम के अनुकूल पोषण प्रदान करती है।
ये पारंपरिक भोज्य पदार्थ हमारी अमूल्य धरोहर हैं, और इन्हें संजोना, व बढ़ावा देना हमारा कर्तव्य ही नहीं सौभाग्य भी है।


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