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मेवाड़ का सिंह: महाराणा प्रताप

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"बोले एकलिंग नाथ,  किले की काली भव्य भवानी से। बोले कृष्ण कन्हैया,  अपनी मीरा प्रेम दीवानी से। चन्दन का बलिदान ये बोला,  पन्ना तेरी कहानी से। ये प्रताप का ही ‘प्रताप’,  चित्तौड़ खड़ा मर्दानी से।" ये पंक्तियां वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप की महान गौरवगाथा का गुणगान करती हैं। प्रताप सिंह प्रथम जिन्हें महाराणा प्रताप के नाम से भी जाना जाता है, मेवाड़ के सिसोदिया राजवंश के महान राजा थे। उनका जन्म 9 मई 1540 (ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया रविवार विक्रम संवत 1597) को राजसमंद, राजस्थान के कुंभलगढ़ किले में उदय सिंह द्वितीय और जयवंता बाई के यहां हुआ था। उन्होंने 1572 में उदय सिंह की मृत्यु के बाद मेवाड़ की गद्दी संभाली। शक्ति सिंह, विक्रम सिंह, जगमाल सिंह, आदि प्रताप के भाई थे। महाराणा प्रताप के बचपन का नाम "कीका" था, जो उन्हें उनके पिता ने दिया था। महाराणा प्रताप को शूरवीरता और पराक्रम का पर्याय माना जाता है। उन्होंने मुगल साम्राज्य के विस्तार के खिलाफ दृढ़ता से संघर्ष किया। उन्होंने 1586 में चावंड को मेवाड़ की राजधानी बनाया और 12 वर्षों तक शासन किया। ■ हल्दीघाटी का युद्ध महाराणा प्रत...

गढ़ तो चित्तौड़गढ़...

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  किसी कवि ने कहा है, "चित्त तोड़ दिए अरि के जिसने,  चित्तौड़ उसी का नाम पड़ा।" चित्तौड़गढ़ बलिदान और तपस्या की, कर्म और धर्म पर मर मिटने की भूमि का नाम है। देशभक्ति, स्वामिभक्ति और शौर्य यहां की आबोहवा में बसा हुआ है। 12 कोस की परिधि में बना चित्तौड़गढ़ दुर्ग कलात्मकता की मिसाल है। यह दुनिया के भव्यतम दुर्गों में से एक है। कीर्ति स्तंभ, विजय स्तंभ और अनेकों महलों से सुसज्जित इस किले ने कई बार शत्रुओं को धूल चटा कर उल्टे पांव लौटने पर मजबूर किया है। लेकिन चित्तौड़गढ़ की विशेषता केवल यह दुर्ग ही नहीं यहां का अभूतपूर्व इतिहास भी है। रानी पद्मनी का जौहर, इतिहास की महानतम गाथाओं में से एक है, वहीं पन्नाधाय की स्वामिभक्ति अपने आप में एक अलग कहानी है। इसे महाराणा प्रताप का गढ़ और जौहर का गढ़ भी कहा जाता है। वैशाख शुक्ल अष्टमी को चित्तौड़गढ़ के स्थापना दिवस दिवस यानि चित्तौड़ी आठम के रूप में मनाया जाता है जो शायद ही राज्य में किसी और जिले के लिए होता हो।  ■ शौर्य और बलिदान की भूमि  चित्तौड़गढ़ वह भूमि है जिसने समूचे भारत के सम्मुख शौर्य, देशभक्ति एवम् बलिदान का अनूठा उदाहरण...

ब्राह्मण कुल गौरव: भगवान परशुराम

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श्री विष्णु के दशावतार में से एक माने जाने वाले भगवान परशुराम को ब्राह्मण कुल गौरव कहा जाना उचित है। वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया अर्थात् अक्षय तृतीया के दिन भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम ने ऋषि जमदग्नि और रेणुका के यहां जन्म लिया था। जन्म के समय इनका नाम राम रखा गया था। कुछ समय बाद जब उन्हें महादेव ने शस्त्र के रूप में विद्युदभि नामक दिव्य परशु(कुल्हाड़ी) दिया, तो इन्हें परशुराम कहा जाने लगा। परशुराम जी को राम, जामदग्नि, भार्गव, और वीरराम के नाम से भी जाना जाता है।  ■ क्षत्रिय कर्म परशुराम का जन्म ब्राह्मण कुल में होने से वे अत्यंत ज्ञानी और विद्वान थे, लेकिन कर्म से वे क्षत्रिय थे। उनका क्रोध, बल और शूरवीरता जगत प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि उन्होंने अहंकारी और धृष्ट हैहय वंशी शासकों का पृथ्वी से २१ बार संहार किया। ■ पितृ आज्ञा सर्वोपरि  मान्यता है कि जब ऋषि जमदग्नि अपनी पत्नी रेणुका से क्रुद्ध हुए और अपने पुत्रों को उनका वध करने का आदेश दिया। कोई भी पुत्र यह नहीं कर सका लेकिन पिता की आज्ञा पालन हेतु परशुराम ने यह कठिन कार्य पूरा किया। इससे प्रसन्न हो  उनके...

जनमगांठ: यादां की गांठ

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घर में बड़ों से सदा से एक मेवाड़ी शब्द सुना है - जनमगांठ अर्थात् जन्मदिन। हांलांकि ऐसा ही शब्द हिंदी भाषा में भी है - वर्षगांठ। अर्थ पूछने पर पता चला कि पहले के समय में जब अभिभावकों को अक्षर ज्ञान या गिनती आदि नहीं आती थी तब वो अपने बच्चों की उम्र या आयु को याद रख सकें इसके लिए हर वर्ष के जन्मदिन पर किसी कपड़े में एक गांठ बांध लिया करते थे। संभवतः इसलिए इस दिन को जनमगांठ कहा जाता है - वह दिन जिसकी गांठ बांधी जाए कि आयु में एक वर्ष की वृद्धि हुई है। साथ ही गांठों की संख्या गिनने पर आयु भी पता लगाई जा सकती है। इस तरह रोज़मर्रा की ज़िंदगी में प्रयुक्त होने वाले इस शब्द का आविर्भाव शायद रोज़मर्रा की ही समस्याओं को हल करने के लिए हुआ होगा। आम बोलचाल की भाषा में कई ऐसे शब्द हैं जिनकी उत्पत्ति के पीछे कोई न कोई जीवनोपयोगी कुंजी है। ये बोलचाल हमारी धरोहर है, और इसे सहेजना हमारा कर्त्तव्य ही नहीं सौभाग्य है। चित्र- इंटरनेट से साभार

गुरु पूर्णिमा: गुरूता का सम्मान

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गुरु पूर्णिमा का पर्व आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसका उद्देश्य गुरु के महत्व और महिमा को पहचानना और सम्मान देना है। गुरू केवल शैक्षणिक ही नहीं होता, है वह व्यक्ति अथवा प्राणी जो हमें कोई सीख दे जाए या जीवन जीने की कला सीखा दे, या कोई जीवनोपयोगी शिक्षा प्रदान करे, गुरु होता है। इतिहास: गुरु पूर्णिमा, वो पूर्णिमा है जब आदियोगी शिव ने आदिगुरु अर्थात् पहले गुरु का रूप लिया । वह दक्षिण की ओर मुड़ गए, यही कारण है कि वे दक्षिणामूर्ती के रूप में भी जाने जाते हैं। इसी दिन को उन्होंने अपने सात शिष्यों, जो सप्तऋषि कहलाए, को योग विज्ञान देना शुरू किया। इस प्रकार, दक्षिणायण की पहली पूर्णिमा, गुरु पूर्णिमा कहलाती है क्योंकि इस दिन पहले गुरु प्रकट हुए थे। एक अन्य मान्यता है कि गुरु पूर्णिमा के दिन महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था। इसी कारण इसे व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। हिंदू धर्म में वेदव्यास को प्रथम गुरु का दर्जा दिया गया है क्योंकी उन्होंने मानव जाति को सर्वप्रथम वेदों के ज्ञान से परिचित करवाया था। बौद्ध धर्म में भी गुरू पूर्णिमा का अत्यधिक महत्व है।  माना जाता है कि इ सी दिन भ...

आपणी बोली: मेवाड़ी

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हमारा देश विविधताओं का भंडार है, खान–पान, संस्कृति, रीति–रिवाज हों या भाषा, हर एक की कई किस्में यहां हैं। यदि भाषाओं की बात करें तो हर राज्य और प्रांत की अपनी भाषा है। इसी क्रम में राजस्थान राज्य में बोली जाने भाषाओं को राजस्थानी कहा जाता है, लेकिन असल में राजस्थानी न तो कोई भाषा है जो कि किसी समूह के लोगों के द्वारा बोली जाती है, ना ही ये विभिन्न बोलियों का एक समूह है, वरन् राजस्थान के विभिन्न भागों में अलग–अलग बोलियां होती हैं। जैसे मेवाड़ी, मारवाड़ी, हाड़ौती, आदि। मेवाड़ी राजस्थान की एक प्रमुख बोली है। यह हिंद-आर्य भाषा का एक प्रकार है। लगभग ५० लाख लोगों द्वारा बोली जाने वाली मेवाड़ी मुख्यतः चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा, राजसमंद, उदयपुर आदि में प्रचलित है। मेवाड़ी राजस्थान की दूसरी सबसे ज़्यादा प्रयुक्त बोली है और राजस्थान की संस्कृति में इसका महत्त्वपूर्ण स्थान है। महाराणा कुंभा के नाटक मेवाड़ी भाषा में ही लिखे गए हैं। मेवाड़ी बोली के अनेक कवि व लेखक इसका मान बढ़ा रहे हैं, और आज पर्याप्त मात्रा में मेवाड़ी साहित्य उपलब्ध है।   इस भाषा का विकास १२वीं व १३वीं सदी में हुआ और आज भी अनेक ...

चैत का महीना : नव का उत्सव

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हिंदू पंचांग के अनुसार बारह महीने इस प्रकार हैं: चैत्र,वैषाख, ज्येष्ठ, आषाढ़,श्रावण,भाद्रपद,अश्विन, कार्तिक,मार्गशीर्ष,पौष,माघ और फाल्गुन। इनमें हिंदू पंचांग वर्ष का प्रथम माह चैत्र है, जो अंग्रेज़ी कैलेंडर के अनुसार मार्च–अप्रैल में पड़ता है। चैत्र मास का आरंभ फाल्गुन अमावस्या के अगले दिन यानि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है, और इसी दिन से चैत्र नवरात्रि की भी शुरुआत होती है। ■ पौराणिक/धार्मिक महत्व पौराणिक मान्यता के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को परमपिता ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की थी, अर्थात् सृष्टि का आविर्भाव इसी दिन हुआ था, अतः इसे वर्षारंभ माना जाता है। एक अन्य मान्यता है कि इसी दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लेकर मनु की नौका को जलप्रलय से निकाल कर सृष्टि में जीवन की शुरुआत की थी। ■ सांस्कृतिक महत्व चैत्र माह में देश में विभिन्न हिस्सों में भारतीय नववर्ष को अलग–अलग नामों और तरीकों से मनाया जाता है। यह चैत्र नवरात्रि का भी महीना है, जिसके अंतर्गत चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को घट स्थापना या नवरात्रि स्थापना कर नौ दिनों तक मां दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है। शक्ति...