उत्तरायण

'उत्तरायण' शब्द  'उत्तर' व 'अयन' से मिल कर बना है। इसका शाब्दिक अर्थ है - 'उत्तर में गमन'।उत्तरायण की शुरुआत २१-२२ दिसंबर को होती है, तथा इस दौरान पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में दिन लम्बे होते जाते हैं और रातें छोटी।  यह दशा २१-२२ जून तक रहती है। उसके बाद दक्षिणायन प्रारंभ होता है।

मकर संक्रांति व उत्तरायण को बहुधा एक ही माना जाता है, जबकी ये दोनों भिन्न हैं। मकर संक्रांति वर्तमान शताब्दी में १४ जनवरी को होती है, परन्तु पूर्व में यह २१ दिसंबर को हुआ करती थी, और आने वाले कुछ हज़ार वर्षों के बाद २१ जून को हुआ करेगी, अर्थात, दक्षिणायन के समय।

खैर वर्तमान में आते हैं, मकर संक्रांति, बिहू(असम), पोंगल(तमिलनाडु), माघी(हिमाचल प्रदेश, पंजाब), तुसू(बंगाल, असम), आदि पर्व जो मुख्यतः सूर्य की आराधना व नयी फसल के उत्सव हैं, उत्तरायण के दौरान(२४-१५ जनवरी) ही मनाये जाते हैं। 

इन पर्वों के पीछे कई लोक मान्यताएँ व कथाएँ हैं, पर सबके मूल में है जीवनदायिनी शक्तियों के प्रति आभार का भाव। सूर्य, अनाज, फसलें, सभी धरती पर जीवनधारा का स्त्रोत हैं, अतः ये पर्व संभवतः उनकी पूजा करने अथवा उनके महत्व को परिलक्षित करने के लिए मनाये जाते हैं।

छायाचित्र- यामिनी दशोरा 



अगर आपको यह पोस्ट पसंद आयी तो इसे शेयर करें, और हमारी सांस्कृतिक विविधता को आगे बढ़ाने में सहयोग करें।

इस ब्लॉग को सब्सक्राइब करें, ताकि हर आने वाली पोस्ट आप तक पहुँचे।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

राजस्थान की थाली–३

आंगन, पोल, तुलसी: मन, आस्था, चौकसी

आयुर्वेद: दैवीय चिकित्सा पद्धति

जनमगांठ: यादां की गांठ

ओरण: सामाजिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों में अंतर्निहित संरक्षण-संवर्धन की परंपरा