तिल - गुड़, खीचड़ा- खिचड़ी

मकर संक्रांति का दिन और तिल-गुड़ के लड्डू, चक्की और पापड़ ना हों, ये कैसे सम्भव है। संक्रांति चूंकि सर्दियों के मौसम में पड़ती है, तो गुड़ और तिल का होना निश्चित है। गुड़ रक्तशोधक और रक्तवर्धक है, तथा सर्दियों में इसका सेवन श्रेष्ठ माना गया है। गुड़ की मिठास के आगे चीनी की क्या बिसात। तिल चयापचय(मेटाबोलिज़्म) को दुरुस्त रखता है, रक्त कोशिकाओं का निर्माण करता है, इसके सेवन से और  भी कई फायदे होते हैं। और सर्दियों में तो ये शरीर की ऊर्जा बनाये रखने में महत्वपूर्ण है।

एक अन्य मुख्य व्यंजन है खीचड़ा या खीच, जो साबुत गेहूँ से बनता है। खीचड़ा बनाने के लिये गेहूँ को पानी में कुछ घण्टे गला कर कूटा जाता है। इस प्रक्रिया को तब तक दोहराया जाता है जब तक इसका छिलका पूरी तरह ना निकल जाये। इसके बाद इन गेहूँ को दूध के साथ गाढ़ा होने तक उबाल लिया जाता है। अन्त में इसे गुड़ डाल कर मीठा कर दिया जाता है। गुड़ की बजाय कई लोग शक्कर का भी प्रयोग करते हैं। खीचड़ा बनाने के पीछे संभवतः यह कारण है कि इस समय मौसम परिवर्तन की शुरुआत होने लगती है अत: सर्दियों के मुख्य आहार मक्का के साथ अब कुछ गेहूँ का भी सेवन प्रारम्भ किया जाना चाहिये, साथ ही यह समय नयी फसल की कटाई के आस पास का भी होता है, मतलब अब नया धान खाया जायेगा, इसका भी यह सूचक है। 

खीचड़ा बनाने की अन्य विधि है, नमकीन खीचड़ा। इसमें गेहूँ को पानी में उबाल कर मटर, हरे चने, मूंगफली, आदि के साथ छौंक लगाया जाता है। छौंक में तेल या घी में जीरा, राई, नमक, मिर्च, हल्दी का प्रयोग होता है। नमकीन खीचड़ा नीम्बू के साथ भी खाया जाता है।

देश के कई हिस्सों में इस दिन खिचड़ी भी बनायी जाती है। यह खिचड़ी सभी दालों, चावल और मसालों  से बनती है। खिचड़ी बनाने के पीछे भी यही भावना है की यह समय नयी फसल के स्वागत का है, साथ ही मौसम को देखते हुए पौष्टिक व परिपूर्ण आहार लेने का भी है।

मकर संक्रांति पर्व पर स्वाद और पौष्टिकता की बहार सी आ जाती है। इस पर्व का असल आनन्द इन व्यंजनों के साथ ही है। 

                 




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