मिट्टी का घड़ा- मिट्टी से जुड़ाव

मिट्टी का घड़ा भारतीय घरों का एक अभिन्न अंग रहा है। मिट्टी के घड़े के अनेक लाभ हैं, और साथ ही इसकी बनावट, आकार-प्रकार और निर्माण क्रिया भी काफी वैज्ञानिक हैं।
छायाचित्र- अमित दैमन

हम सभी घड़ों की निर्माण प्रक्रिया से भलीभांति परिचित हैं। इन्हें बनाने के लिये कुम्भकार गीली मिट्टी को मनचाहे आकार में ढालते हैं, उसके बाद इस पात्र को आग पर पका कर अन्दर तक अच्छी तरह सुखाया जाता है। पूर्णतः शुष्क हो जाने से बाद में पानी भरा रहने पर भी यह पात्र गलता नहीं। इस काम में काफी समय, धीरज, तकनीक और कारीगरी लगती है। 

इसी के साथ, इसके कई फायदे भी हैं। मिट्टी का घड़ा या मटका/मटकी पानी के तापमान को बहुत ही अच्छी तरह से नियंत्रित रखता है।इसका प्राकृतिक प्रशीतन प्रभाव इसे किसी भी अन्य पदार्थ से बने बर्तनों से भिन्न बनाता है। अर्थात, कोई भी अन्य पदार्थ से बना बर्तन पानी को खुद-ब-खुद ठंडा नहीं कर सकता। अब आप पूछ सकते हैं कि आज के जमाने में घर-घर में उपलब्ध रेफ्रीजरेटर भी यह काम बखूबी करता है, लेकिन रेफ्रीजरेटर का पानी अप्राकृतिक रूप से ठंडा होता है, इसलिये गुणकारी नहीं होता, इसके उलट फ्रिज का 'चिल्ड' पानी सेहत को काफी नुकसान पहुंचाता है। 

यदि आप मिट्टी के घड़े में साफ पानी भर कर रखें तो वह पानी को एकदम उचित तापमान पर रखता है, इसका कारण है इसमें उपस्थित छोटे-छोटे छेद, जिनसे पानी रिसता है, इस पानी के वाष्पीकरण के लिये घड़े के पानी की ऊर्जा प्रयुक्त होती है, और इसका पानी ठंडा रहता है। 

इसके अलावा, मटके का पानी क्षारीय होता है, इस कारण ये शरीर में अम्लता(ऐसिडिटी) को नियंत्रित करता है, यह पानी हमारे शरीर के चयापचय(मेटाबोलिज़्म) को भी दुरुस्त रखता है। गर्मियों में मटके का पानी सूर्यताप से भी बचाता है।

मिट्टी का घड़ा हमारी प्रचीनतम जीवनशैली का अंग रहा है। सिन्धु घाटी सभ्यता में भी इसके अवशेष मिले हैं। वहाँ मिले मिट्टी के पात्र बहुत शुद्ध पाये गये, जबकी आजकल मिट्टी में सीसा आदि होने से ये पात्र प्रदूषित हो सकते हैं। 

मिट्टी के घड़े प्रकृति और हमारे पुरखों के वैज्ञानिक दृष्टिकोण का श्रेष्ठ उदाहरण हैं। आवश्यकता है कि हम इस पारंपरिक ज्ञान का प्रसार करें, और इसे आज की और आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाया जाए।



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