पंगत: एक अद्भुत परम्परा


 
पंगत शब्द मूलतः संस्कृत शब्द पँ
क्ति से बना है, जिसका अर्थ है कतार या जमावड़ा। यह भारतीय भोजनशैली की अनूठी विशेषता है। 

गुरुद्वारों के लंगर पंगत का ही एक स्वरूप हैं, जिसमें भोजन करने वाले लोग एक पँक्ति में एक साथ बैठ कर एक जैसा खाना खाते हैं। कहा जाता है की सिखों के प्रथम गुरु नानक देव जी पंगत और संगत को बहुत महत्व देते थे। उनका कहना था की जहाँ संगत(जमावड़ा) है, वहाँ पंगत(लंगर) होना ही चाहिये। गुरुद्वारों के लंगर इसी भावना की अभिव्यक्ति हैं, जहाँ सभी लोग बिना किसी भेदभाव के एक साथ भोजन करते हैं।

पंगत की एक और विशेषता है, कि इसमें भोजन प्रेम और मनुहार के साथ परोसा जाता है। साथ ही सभी खाने वालों को एक सरीखा महत्व दिया जाता है। यही प्रेम, मनुहार और समभाव भोजन के आनन्द को चौगुना कर देता है। 

कुछ वर्षों पहले तक पंगत केवल गुरुद्वारों के लंगर तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि सामजिक भोज इसी रीति से हुआ करते थे। आज भी भारत के गावों और छोटे शहरों में यह चलन आम है। लेकिन बड़े शहरों में यह परंपरा विलुप्त सी हो चुकी है। यहाँ इसका स्थान आधुनिक भोजन प्रणाली(बुफे) ने ले लिया है। परन्तु इस आधुनिकता में मनुहार की वो मिठास प्राय: नहीं मिलती। 

पंगत की कई विशेषताएं और भी होती हैं, जैसे इसमें साफ सफाई का विशेष ध्यान रखा जाता है, भोजन के समय जूते आदि नहीं पहने जाते और एक पंगत में बैठे सभी जन भोजन एक साथ आरम्भ करते हैं, और पंगत से उठते भी एक ही साथ हैं। ये सभी विशुद्ध भारतीय भोजन परंपरा के गुणधर्म हैं जहाँ भोजन को ईश्वरीय प्रसाद मान कर ग्रहण किया जाता है। साथ ही भोजन परोसने वाले लोग, प्रत्येक भोजनकर्ता को व्यक्तिगत रूप से भोजन परोसते हैं। इस परंपरा में मनुहार की जो महक है, वह अद्भुत है।

पंगत में लोग धरती पर बैठ कर और पालथी मार कर भोजन करते हैं, यह ना केवल सांस्कृतिक बल्कि वैज्ञानिक रूप से भी महत्वपूर्ण है। भोजन के समय सुखासन में बैठने से पाचन तंत्र ठीक रहता है और शरीर के इस अवस्था में बैठने से रक्त प्रवाह सुचारू रूप से होता है, और वज़न भी नियन्त्रित होता है। आयुर्वेद के अनुसार सुखासन की स्थिति में मन और बुद्धि दोनों शान्त रहते हैं, जिससे भोजन के सभी गुण शरीर को मिलते हैं। साथ ही बैठने की यह मुद्रा शरीर का लचीलापन भी बढ़ाती है।

पंगत में भोजन परोसने के बहाने छोटे बच्चों को सामाजिकता और सेवा के गुण सिखाये जाते थे, और बड़ों को इन्हें निभाने का मौका मिलता था।

पंगत हमारी संस्कृति का एक ऐसा पहलू है, जिसे पुनर्जीवित किया जाना चाहिये। यह चलन भारत की सभी विशेषताओं, जैसे, एकता, सहिष्णुता, समानता, सेवा, समभाव, आदि को अपने में समाहित करता है। पंगत का भोजन शायद इसिलिए अधिक स्वादिष्ट होता है क्योंकि इसमें बनाने वाले के कौशल के साथ-साथ परोसने वाले का स्नेह भी सम्मिलित होता है।

आपके पास भी अगर इस सुन्दर परंपरा से जुड़ी कुछ यादें या विचार हैं तो उन्हें कमेंट्स में बताएं, और यह भी बताएं कि इस लुप्तप्राय संस्कृति को क्यों पुन: सामान्य व्यवहार में लाया जाना चाहिये।


अगर आपको यह पोस्ट पसंद आयी तो इसे शेयर करें, और हमारी सांस्कृतिक विविधता को आगे बढ़ाने में सहयोग करें।

इस ब्लॉग को सब्सक्राइब करें, ताकि हर आने वाली पोस्ट आप तक पहुँचे।



टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

राजस्थान की थाली–३

आंगन, पोल, तुलसी: मन, आस्था, चौकसी

आयुर्वेद: दैवीय चिकित्सा पद्धति

जनमगांठ: यादां की गांठ

ओरण: सामाजिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों में अंतर्निहित संरक्षण-संवर्धन की परंपरा