वसंत पंचमी : उल्लास का उत्सव


वसंत ऋतु के आगमन से माहौल में उत्साह 
सा घुल जाता है। इसी क्रम में माघ मास की पंचमी तिथि को वसंत पंचमी का पर्व उल्लास और आनन्द के साथ मनाया जाता है। इस दिन विशेषतः विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है और वसंत के स्वागत में पीले वस्त्र पहने व पीले पकवान बनाये और खाए जाते हैं।

वसंत ऋतु सभी ऋतुओं में सबसे अधिक मनभावन है क्योंकि, इस ऋतु में खेत-खलिहान, पेड़-पौधों और फूल-पत्तों सभी पर बहार आ जाती है। पीली सरसों से भरे खेत, आम्र मन्जरियों से लदे पेड़, भवरों की गुंजार और तितलियों के रंगों से वातावरण सुवासित और सुन्दर लगने लगता है।

वसंत पंचमी को माता सरस्वती का जन्मदिन माना जाता है। उपनिषदों के अनुसार इसी दिन भगवती दुर्गा के तेज से सरस्वती की उत्पत्ति हुई थी। कथा इस प्रकार है कि जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि में पेड़, पौधे, नदी, समुद्र, जीव-जंतु और मनुष्यों का सृजन किया तो यहां मौन का खालीपन था। कोई वाणी या आवाज़ नहीं थी। इस कारण ब्रह्मा को यह सृष्टि अधूरी जान पड़ती थी। तब उनके आवाह्न पर विष्णु जी ने भगवती दुर्गा से यह समस्या बताई। इस पर दुर्गा के तेज से माँ सरस्वती की उत्पत्ति हुई। इस प्रकार संसार के सभी जीवों और वस्तुओं में शब्द, वाणी, संगीत और रस का संचार हुआ। यही देवी सरस्वती सृष्टि के सृजनकर्ता ब्रह्मा की अर्धान्गिनी और शक्ति भी हैं। साथ ही यह विद्या, बुद्धि और विवेकदायिनी भी हैं।

एक अन्य कथा के अनुसार श्रीकृष्ण ने देवी सरस्वती से प्रसन्न होकर वरदान दिया जिसके कारण वसंत पंचमी के दिन उनकी पूजा की जाती है। इसीलिये यह दिन शिक्षा, लेखन, कला आदि के क्षेत्र से जड़े लोगों के लिये बहुत ख़ास है। इस अवसर पर वे अपनी अधिष्ठात्री देवी से विद्या, बुद्धि, मेधा और प्रज्ञा का वरदान माँगते हैं।

अतः उछाह और उल्लास की वसंत ऋतु सही मायनों में उस वाणी और रस की देवी का उत्सव है, जिसने सृष्टि के चिर मौन और नीरसता को समाप्त कर उमंग, रस और राग का आविर्भाव किया।

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