आंगन, पोल, तुलसी: मन, आस्था, चौकसी

‌■आँगन 


भारतीय घरों में आँगन का विशेष महत्व है। आँगन हमारी वास्तुकला का अभिन्न अंग रहा है। समुचित हवा और रोशनी के लिए घरों में इस संरचना का होना आवश्यक है। खुला आँगन प्रायः घर के मध्य भाग में स्थित होता है जिससे पूरे घर में हवा-रोशनी समान रूप से पहुँचकर घर के वातावरण को शुद्ध व कीटाणुरहित रखे।

सांस्कृतिक दृष्टि से आँगन घर-परिवार की दिनचर्या और गतिविधियों का केंद्र हुआ करते थे। बड़े सवेरे की ठंडी हवा का आनन्द लेने के लिए परिवार के सदस्य आँगन की ही शरण लिया करते थे। इसके बाद रोज़ाना के काम जैसे कपड़े, बर्तन धोना, आदि आँगन में ही संपन्न हुआ करते थे।

इसके बाद दोपहर का भोजन भी इसी आँगन में किया जाता था। सर्दियों की गुनगुनी धूप भी इसी आँगन से घर में पहुँचती थी। 

शाम के समय यह आँगन आस-पड़ोस के लोगों की चहल-पहल और बच्चों की उछलकूद से गुलज़ार होता था। गर्मी के मौसम में प्रायः लोग यहीं सोया करते थे।

रोज़मर्रा के इन कामों के अलावा आँगन में अचार-पापड़ सुखाना, सिलाई-बुनाई, पढ़ाई-लिखाई, आदि भी की जाती थी। 

यही नहीं, घर में शादी-ब्याह या अन्य कोई आयोजन आँगन में ही संपन्न होते थे। लग्न मंडप हो या जीमणवार, कथावाचन हो या भजन-कीर्तन, हर महफ़िल का केंद्र यही आँगन होता था।

■तुलसी

छायाचित्रः यामिनी दशोरा

प्रायः आँगन में एक तुलसी हुआ करती थी। यह वातावरण को शुद्ध और स्वच्छ बनाए रखती थी। साथ ही जनजीवन की आस्था का केंद्र होने से तुलसी का पौधा सकारात्मकता का संचार भी करता था। इससे घर-द्वार में शुभत्व की भावना का संचार होता था।

■पोल 

किसी भी घर के आँगन तक पहुँचने के लिए पोल अर्थात् प्रवेशद्वार से होकर गुजरना होता था। इसकी एक उपयोगिता यह थी कि ये घर के भीतर किसी के भी अनाधिकार प्रवेश को रोकने में सहायक था। 

घर के मुख्य द्वार के बाद पोल से होकर ही घर के भीतर प्रवेश किया जा सकता था। इस प्रकार घर का यह भाग किसी भी अनावश्यक दखल को रोकता और परिवार की निजता बनाए रखता था। 

प्राचीन भारतीय भवन-निर्माण व वास्तुकला अपने आप में बेजोड़ थी। यह विज्ञान और तकनीक के साथ-साथ व्यावहारिकता का भी अद्भुत उदाहरण है। इससे ज्ञात होता है कि हमारी सांस्कृतिक विरासत वैज्ञानिक और बौद्धिक रूप से श्रेष्ठ रही है।

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