संस्कृत: भाषाओं की जननी
संस्कृत भाषा का प्रभाव कई भारतीय भाषाओं पर देखने को मिलता है, जिनमें दक्षिण भारत की भाषाएँ जैसे मलयालम, तमिल, तेलुगू और कन्नड़ प्रमुख हैं। इन भाषाओं के कई शब्द तो संस्कृत से सीधे लिये गए हैं, वहीं कुछ अन्य शब्द अपने संस्कृत रूप से थोड़े बदलाव कर लिये गए हैं। साथ ही मराठी भाषा में भी कई शब्द संस्कृत के हैं। इसके अलावा हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी का तो उद्भव ही संभवतः संस्कृत से हुआ है।
आर्यभाषा संस्कृत ने न सिर्फ भारतीय भाषाओं बल्कि अन्य देशों की भाषाओं को भी समृद्ध किया है। विद्वानों का मानना है कि लैटिन व ग्रीक भाषा के कई शब्द उनके समानार्थी संस्कृत शब्दों से मिलते-जुलते हैं। चीन, इंडोनेशिया, नेपाल आदि देशों की शब्दावली भी संस्कृत के रंगों से रंगी है। अत: इस अति प्राचीन भाषा का प्रभाव विश्वव्यापी है।
संस्कृत साहित्य भी अपने आप में समृद्ध और बहुमूल्य है। प्राचीन ग्रंथ भगवद्गीता संस्कृत साहित्य की अनुपम कृति है। संस्कृत के श्लोक, भजन, गीत, आदि पूरे देश में मन से सुने और गाए जाते हैं। चाहे संस्कृत को आम बोलचाल की भाषा का दर्जा ना मिल सका हो, लेकिन आज भी शादी-ब्याह, तीज-त्यौहार और अन्य कई कार्यक्रमों की प्रक्रिया संस्कृत श्लोकों व मंत्रों के बिना पूर्ण नहीं होती।
हमारे देश में संस्कृत साहित्य के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार भी दिया जाता है। साथ ही इस भाषा को जन-जन तक पहुँचाने के लिए रेडियो कार्यक्रम, और कई समाचार पत्र भी चलाये जाते हैं। यह तथ्य भी सर्वविदित है कि दूसरे देशों के विद्वान संस्कृत का अध्ययन व प्रचार प्रसार कर रहे हैं। साथ ही विश्व भर के नामी विश्वविद्यालयों में संस्कृत भाषा पर शोध और अध्ययन किया जा रहा है। यह हमारे लिये गर्व का विषय है।
यह हमारी अपनी भाषा है जो विश्व भर में पढ़ी और सराही जा रही है, तो हम भी इसकी शब्दावली को जानने और समझने का सौभाग्य प्राप्त करें।
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चित्र- इन्टरनेट से साभार।
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