तांबूल : सत्कार, सौंदर्य, स्वाद, सेहत


तांबूल अर्थात् पान चिरकाल से भारतीय संस्कृति का महत्वपूर्ण अंग है। पान का प्रयोग विभिन्न परिस्थितियों में भिन्न-भिन्न रूप से किया जाता है। कहीं इसे पूजा सामग्री के रूप में प्रयुक्त किया जाता है, तो कहीं इसका प्रयोग अतिथियों के सत्कार में होता है। सेहत के लिए भी यह लाभदायक है,और मुखशुद्धि के लिये ये किसी भी माउथ फ्रेशनर को पीछे छोड़ सकता है। 

इस सादे से पत्ते में औषधीय गुणों की प्रचुरता है। यह भोजन को पचाने में सहायक है, यही कारण है कि हमारी संस्कृति में भोजन के पश्चात मेहमानों को पान का बीड़ा दिया जाता था। अत: सत्कार की यह अद्भुत परम्परा दरअसल सेहत से जुड़ी है। और यह कहना भी गलत न होगा कि हमारी सांस्कृतिक विरासत वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर आधारित है। 

सिर्फ सत्कार ही नहीं, पूजा-अर्चना के विधि-विधान में भी तांबूल की भूमिका अति महत्वपूर्ण है। हिन्दू संस्कृति में इसका महत्व पूजा-पाठ में धूप, दीप और नैवेद्य के समान ही है। क्योंकि किसी भी शुभ कार्य में इष्टदेव को धूप, दीप, नैवेद्य के साथ पान-सुपारी भी अर्पण किया जाता है। शादी-ब्याह, यज्ञोपवीत आदि संस्कारों में तांबूल का प्रयोग अवश्य होता है।

इसके अलावा पान मुखशुद्धि का उत्तम साधन है। इसके सेवन से कफ, श्वास रोग और मुख की दुर्गंध में फायदा होता है। यहाँ तक की प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथों में तांबूल के अनगिनत गुणों का बखान मिलता है, जिससे इसे कई आयुर्वेदिक औषधियों में प्रयुक्त किया जाता है। प्राचीन समय में पान को सौंदर्य प्रसाधन के रूप में, जैसे होंठों को रंगने के लिये भी प्रयोग किया जाता था। 

वैज्ञानिक दृष्टि से भी पान के गुण कम नहीं हैं। इसमें वाष्पित होने वाले तेल उपास्थित होते हैं, जो इसे पाचन में सहायक बनाते हैं। इसके साथ ही अमीनो एसिड, कार्बोहाइड्रेट और विटामिन्स जैसे रसायन इसे गुण प्रदान करते हैं। 

दिलचस्प बात यह है कि पान की खेती मुख्य रूप से भारत और कुछ अन्य एशियाई देशों में ही की जाती है। इसका कारण है यहाँ का वातावरण जो पान के उत्पादन के लिये सही है। यही नहीं पान का प्रयोग भी भारत में ही सबसे ज़्यादा होता है। 

तांबूल हमारी धरोहर है, और यह सौंदर्य, साधना, सत्कार, स्वाद और सेहत जैसे अनमोल तोहफों से हमारी संस्कृति को सुसज्जित करता है।

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