चौपड़ के खेल : भाग्य और कौशल का मेल

चौपड़ का अर्थ है, चौरस(वर्गाकार) खानों से बनी आकृति। हांलांकि इस शब्द का प्रयोग अधिकतर चौसर के खेल के लिये किया जाता है। दिलचस्प बात यह है कि चौसर के अलावा साँप-सीढ़ी और शतरंज भी एक तरह से चौपड़ के खेल ही हैं, क्योंकि ये भी वर्गाकार खानों के रूप में ही होते हैं।

हमारे लिये गर्व का विषय यह है कि इन सभी खेलों की जन्मस्थली भारत है। इनकी उत्पत्ति को लेकर मान्यताएँ और इनके विषय में कुछ रोचक तथ्य इस प्रकार हैं।

■ साँप-सीढ़ी

माना जाता है कि साँप-सीढ़ी का खेल १३वीं शताब्दी में सन्त ज्ञानदेव द्वारा बनाया गया। इसका उद्देश्य खेलने वाले को नैतिकता का पाठ पढ़ाना था। इसके बाद इसमें कई बदलाव किये गये जिससे यह अपने वर्तमान स्वरूप में आया।

साँप-सीढ़ी पूरी तरह से भाग्य का खेल है। इसमें पासे खुलने पर खिलाड़ी को साँप का काटा जाना पतन को दर्शाता है, जबकि सीढ़ी उन्नति की परिचायक है और जीत की ओर ले जाती है। साँप या सीढ़ी का मिलना केवल पासे गिरने की स्थिति अर्थात् भाग्य पर निर्भर करता है।

■ चौसर

चौसर के खेल का वर्णन महाभारत में मिलता है, जहाँ इस खेल ने कहानी की दिशा मोड़ दी थी। इस खेल के चलते कई महत्वपूर्ण घटनाएँ हुईं, जिन्होनें महाभारत के युद्ध की पृष्ठभूमि तैयार की। 

चौसर के खेल को भाग्य और कौशल का खेल माना जाता है, जहाँ पासे भाग्य से खुलते हैं पर चाल चली जाती है स्वेच्छा और स्वविवेक से। इसमें खिलाड़ी साँप-सीढ़ी की तरह पूर्णतः भाग्य के भरोसे नहीं रह सकता, वरन् उसे बुद्धि और नैपुण्य का प्रयोग भी करना होता है। 

■ शतरंज

चतुरंगिनी, चतरांग, आदि शतरंज के खेल के प्रारम्भिक नाम थे। पौराणिक मत के अनुसार शतरंज की शुरुआत लंकापति रावण की महारानी मंदोदरी ने की थी, तो कुछ अन्य मतों के अनुसार मेघनाद की पत्नी को इसके आविष्कार का श्रेय दिया जाता है। यह मुख्यतः दो विरोधी सेनाओं द्वारा प्रयुक्त दांव-पेंच और रणनीति का खेल है। इसलिये इसे एक बौद्धिक खेल माना जाता है। 

उल्लेखनीय है कि शतरंज मात्र कौशल का खेल है। इसमें खिलाड़ी की दक्षता और दिमाग की परख होती है। शतरंज की चालें और शह-मात की पेचीदगी को समझने के लिये बड़ी एकाग्रता की आवश्यकता होती है।

उपर्युक्त सभी रोचक खेलों का प्रादुर्भाव भारत में हुआ है, और कहीं न कहीं ये आधुनिक बोर्ड गेम्स जैसे लूडो, आदि के लिये प्रेरणा बने, जिनमें खेलने वाले को शारीरिक श्रम नहीं करना पड़ता परंतु मानोरंजन भरपूर होता है। 

चौपड़ के ये खेल हमारी अमूल्य धरोहर हैं, जो मज़ेदार तो हैं हीं, साथ ही दिमागी कसरत और किस्मत की आज़माईश का भी मौका देते हैं।


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