पंचपर्व: उजास और उल्लास


दीपावली भारतवर्ष के महत्वपूर्ण त्यौहारों में से एक है। इस त्योहार का पौराणिक महत्व तो है ही, साथ ही इसे मनाने के तरीकों के कई वैज्ञानिक आधार और कारण भी हैं। मान्यता है कि दीपावली के दिन भगवान राम वनवास पूर्ण कर अयोध्या लौटे थे, इसी खुशी में नगरवासियों ने घी के दीपक जला कर उनके आगमन की तैयारियां की थी। 

इसी परंपरा के चलते दीपावली से पहले घरों व प्रतिष्ठानों की साफ–सफाई और रंग रोगन होता है, और दीपावली के पांच दिनों में दीपक जला कर रोशनी की जाती है, परंतु हमारी सभी परंपराओं की भांति इस परंपरा के पीछे भी विज्ञान और तर्क हैं। दीपावली का त्योहार मौसम चक्र में परिवर्तन के समय मनाया जाता है, जब शीत ऋतु का आरंभ होने लगता है और मौसम के बदलाव से, बीती वर्षा ऋतु आदि के प्रभाव से घरों में मच्छर, जाले आदि पनपने लगते हैं। अतः इस समय होने वाली साफ–सफाई अति महत्वपूर्ण है। साथ ही दीपावली के दिनों में दीपक जलाने से अंधकार तो दूर होता ही है, साथ ही बीमारियां फैलाने वाले कीड़े–मच्छर आदि भी दूर रहते हैं। इस प्रकार यह पर्व प्रकृति के परिवर्तनों के अनुसार स्वयं को ढालने में हमारी सहायता करता है।
दीपावली को पंचपर्व भी कहा जाता है क्योंकि यह पांच दिनों का त्योहार है। ये पांच पर्व कुछ इस प्रकार हैं–
■ धन्वंतरी त्रयोदशी(धनतेरस):
धनतेरस के दिन आयुर्वेद के प्रवर्तक और भगवान विष्णु के अवतार माने जाने वाले भगवान धन्वंतरी की पूजा कर उनसे वर्ष भर आरोग्य और उत्तम स्वास्थ्य का वरदान मांगा जाता है। धनतेरस के दिन ही दीप पर्व का शुभारंभ भी होता है और दीप जला कर अंधियारा मिटाने का प्रयास किया जाता है। इस दिन बर्तन, चांदी आदि की खरीद शुभ मानी जाती है।
■ नरक चतुर्दशी (रूप चतुर्दशी/रूप चौदस):
लक्ष्मी पूजन से एक दिन पहले मनाई जाने वाली नर्क चतुर्दशी के पीछे मान्यता है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षस का वध कर लोगों को उसके भय से मुक्ति दिलाई थी। साथ ही इस दिन जल्दी उठ कर तेल और उबटन लगाने के बाद पानी में अपामार्ग की पत्तियां डाल कर स्नान करने से नरक से मुक्ति मिलती है और रूप सौंदर्य की प्राप्ति होती है। इस दिन दीपक जला कर रोशनी की जाती है।
■ लक्ष्मी पूजन (दीपावली):
इस दिन को पंच पर्व का मुख्य दिवस माना जाता है। धन–धान्य की देवी लक्ष्मी की पूजा कर उनसे धन–वैभव की प्रार्थना की जाती है। घरों और प्रतिष्ठानों को दीयों की कतारों से सजाया जाता है, पटाखे और आतिशबाजी जला कर खुशियां मनाई जाती हैं। 
■ गोवर्धन पूजा (खेखरा):
माना जाता है कि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठा कर बृजवासियों को इंद्र के कोप से बचाया था। अतः इस दिन गोबर के पर्वत बना अथवा गोवर्धन भगवान बना कर पूजा की जाती है और गाय–बैलों को सजा कर उनकी पूजा की जाती है।
■ यम द्वितीया (भाई दूज):
इस दिन बहनें अपने भाइयों को तिलक लगा कर उनके लिए मंगलकामना करती हैं, और भाई अपनी बहनों को उपहार देते हैं। इस दिन भी दीपक जला कर अंधकार को दूर किया जाता है।
दीपावली का यह त्योहार जनसामान्य के मन में उत्साह और उमंग के संचार का त्योहार है, शरद ऋतु के आगमन से खानपान और पहनावे में आने वाले परिवर्तनों की शुरुआत भी इसी समय होती है। इस प्रकार प्रकृति के साथ तारतम्य बिठाने के लिए भी यह त्योहार आवश्यक है। 
दीपावली का यह त्योहार हमारी अमूल्य विरासत है, और इसके पारंपरिक अर्थ और महत्व को जानना और समझना हमारे लिए गर्व और सौभाग्य का विषय है।



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